एक समय की बात है, जब एक धर्मात्मा गुरु अपनें
दो शिष्यों के साथ शांति यात्रा और धर्म प्रचार हेतु गाँव-गाँव भ्रमण कर रहे थे। तभी
काफी देर तक चलने के कारण गुरु को बड़ी प्यास लग जाती है। जिस वजह से वह एक पैड की छाँव
में थक कर बैठ जाते हैं और आराम करने लगते हैं।
दोनों शिष्य अपने गुरु की थकान दूर करने और प्यास मिटाने
के लिये पानी का प्रबंध करने की सोचते हैं। और तब दोनों में से एक शिष्य अपने गुरु
के लिये पीने का पानी लाने नदी की और जाने लगता है और दूसरा शिष्य गुरु के पास बैठ
कर उनके पाँव दबाता है।
नदी के पास गया हुआ शिष्य देखता है की नदी किनारे कई
लोग अपने मैले कपड़े धो रहे होते हैं, पानी में बच्चे खेल रहे होते हैं और इनहि सभी गतिविधियों
के कारण पानी दूषित और मठ-मैला दिखता है। वह शिष्य काफी सोच विचार के बात यह निर्णय
लेता है की गुरु देव को ऐसा पानी नहीं पिलाना चाहिए, और वह शिष्य उदास हो कर गुरु
के पास वापिस लौट आता है।
गुरु अपने उस शिष्य के चेहरे को देख कर समझ जाते हैं
की उसे पानी नहीं मिला है इसी लिये वह उदास है। गुरु फौरन उसके सिर पर हाथ फैरा कर
उसे सांत्वना देते हैं की कोई बात नहीं। तुम नें प्रयत्न किया येही मेरे लिये बहुत
है।
अब की बार दूसरा शिष्य पानी लाने जाता है,
दूसरा शिष्य काफी देर तक वापिस नहीं लौटता है। गुरु और उनके पास बैठा शिष्य अब उस की
चिंता करने लगते हैं। तभी अचानक वह शिष्य पानी भर कर मुसकुराता हुआ वापिस आता दिखता
है।
पहले गया हुआ शिष्य अपना सिर खुजाने लगता है,
उसे विश्वास नहीं होता है की उसके सहपाठी शिष्य को साफ पानी मिला कैसे,
गुरु नें बड़ी प्रसन्नता से पानी पिया और उस शिष्य को आशीष दिया।
पहले पानी लाने गए शिष्य से रहा नहीं गया तो उसने पूछ
ही लिया की यह केसे संभव है? दूर दूर तक नदी के अलावा पानी का कोई अन्य स्रोत ही
नहीं है और नदी का पानी तो पूरा मठ-मैला था तुम्हें साफ पानी मिला तो कैसे और कहाँ
से मिला?
इस प्रश्न के उत्तर में अभी वह शिष्य जवाब देने ही वाला
था की उसके गुरु नें उसे रोक दिया और वह खुद ही इस प्रश्न का उत्तर देने लगे।
उन्होने कहा की प्रिय शिष्य तुम्हारी बात शत प्रतिशत सच है की वहाँ नदी के सिवा
पानी का और कोई अन्य स्रोत नहीं है, और नदी का पानी मठ-मैला था। लेकिन यह शुद्ध पानी उसी
नदी का है।
फिर उन्होने कहा की... जब तुम मेरे लिये पानी लाने गए
तब तुम दूषित मठ – मैले पानी को देख कर लौट आए पर तुम्हारे सहपाठी शिष्य नें उस जगह
रुक कर पानी को शांत होने का वक्त दिया और पानी में घुली हुई धूल मिट्टी को तल पर बैठ
जाने तक अपना धैर्य बनाए रखा। और उसी धैर्य के फल स्वरूप वह शुद्ध पानी मेरे लिये ला
सका। इस बात को सुन कर पहले गया हुआ शिष्य काफी प्रभावित हुआ और उसने अपने जीवन का
एक महत्वपूर्ण सबक सीखा।
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