जया पार्वती व्रत
अषाढ़ सूद 13 के दिनों से किया जाता है। सुबह जल्दी उठकर स्नानदी आदि
करके भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते है। यह
पाच दिन का व्रत है। जिसमे विवाहित औरते और कुवारी कन्याएँ बिना नमक और बिना गुड का, भोजन करने का
अनुष्ठान करती है। बाद मे शाम को फलाहार लिया
जाता है। (इस व्रत में अनाज एक वक्त ही खाया जाता है)। इस व्रत मे पाचवे दिन पूरी
रात का जागरण भी किया जाता है। यह व्रत भगवान शिव-पार्वती की कृपा से खासकर पति का
वियोग न हो, अच्छे पति की कामना के लिए और संतान प्राप्ति के लिए किया
जाता है।
जया पार्वती व्रत मे पुजा की सामग्री- Worship Goods
भगवान शिव और पार्वती की पुजा दूध और पानी से की जाती है।
और यह पाच दिन का व्रत होता है इस लिए सारी चिज़े पाच-पाच ली जाती है। फल, नगरवेल के पते, सुपारी, लोंग, तज, इलायची, घी, कपूर, आरती के लिए
दिया और अगरबत्ती धूप, कुमकुम, शृंगार, रुई की बनाई गई चुनी, हार (जिसे कंकोला कहते
है) दान के लिए गेहु, चावल आदि।
आज कल जवाराहार किसिकों उगाना नहीं आता तो यह बाज़ार मे भी
व्रत से कुछ दिन पहले मिलते है। और सामग्री का पेकेट भी बाज़ार मे मिलात है।
जवारा- Holy Plant
जवारा यानि की गेहु और मग के उगाये गए पौधे। इन्हे शिव और
पार्वती का रूप मानकर इनकी पुजा की जाती है। जवारा को बीज तिथि या पंचम तिथि के
दिन छोटे से घुमले (बाउल) मे लाल और काली मिटी और गोबर का मिश्रण करके उस मे गेहु
और मूंग उगाये जाते है। जिसे जवार कहते है।
जवारा के पौधे हर किसि कों उगानें नहीं आते है इस लिए, बाज़ार मे भी
व्रत से कुछ दिन पहले उगाये हुए जवारा के पौधे तैयार भी मिलते है। और सामग्री का
पेकेट भी बाज़ार मे मिलात है।
जया पार्वती पुजा की विधि – Worship Theory
अषाढ़ सूद 13 के दिन सुबह भगवान
शिवके मंदिर मे जाकर ब्राहमीण को और शिव पार्वती की मूर्ति को प्रणाम करके यह विधि
शुरू की जाती है। पहले शिवजी के लिंग पर दूध और पानी मिश्रित करके अभिषेक किया जाता
है। माता पार्वती को कुमकुम तिलक शृंगार, धूप दीप जला के पुजा शुरू की जाती है। जया पार्वती व्रत रखने
वाली स्त्रियॉं को और कुमारिका ओ को ब्राहमीण कुमकुम का टीका लगते है और व्रत का
धागा बांधते है। सामग्री मे लाई गई पाँच-पाँच चीजों को नागरवेल के पत्तों पर एक एक
रखवाते है। उसके बाद जवारे मे दूध और पानी मिला कर जवारे में अभिषेक करवाते है और अबील, कुमकुम चढ़ाते है।
रुई की बनाई गई चुनी और हार जवारे को पहनाते है, (इसे नगला भी कहा जाता है।)। शिव और पर्वती माता की आरती धूप और दीप से की जाती है। बाद मे ब्राहमण महाराज को दान दक्षिणा देकर जवारे को पीपल के पैड़ के पास रख दिया जाता है, और परिक्रमा कर के प्रणाम कर के जवारे मे से कुछ तिनकें निकाल लिए जाते है। व्रत की पुजा समाप्त के औरतें और लडकीयां निकाले हुए तीनकों को अपनें बालो मे लगा कर पुजा समाप्त करती हैं और मंदिर मे भगवान शिव पार्वती से अपनी इच्छा पूर्ति के लिए प्रार्थना करके आशीर्वाद ले कर घर जाती हैं।
जया पार्वती कथा – Holy Story Of Jaya parvati
जया पार्वती व्रत पहले किसी ब्राहमण पति-पत्नी ने किया था। वह
दोनों हर तरह से सुखी जीवन व्यथित कर रहे थे। लेकिन उनके यहा संतान नहीं थी। एक
बार नारदजी उनके घर आये, उन्होने एक उपाय बताया की दूर जंगलमे दक्षिण दिशा मे शिवजी
का एक मंदिर है, उस मंदिर मे कोई पुजा नहीं करता है। आप दोनों वहां जाकर शिव-पार्वती
की पुजा करें। भगवान शिवजी और माता पार्वती की कृपा से आप की इच्छा जरूर पूरी
होगी।
नारदजी के जाने के बाद दोनों पति–पत्नी जंगल की और चलते गए।
बहुत ढूँढने पर उन्हें वहां एक एक पुराना मंदिर दिखा, जहा पर कोई नहीं था।
दोनों ने वहा रहे कर पुजा करने का निश्चय किया। वह दोनों रोज शिवजी और पार्वती माँ
की पुजा करते और फल खा कर गुज़ारा करते थे। ऐसे ही पाँच साल बीत गए। फिर एक दिन
जंगल मे पुजा के लिए फल फूल लेने ब्राहमण गया, लेकिन शाम तक वापस नहीं
आया, तब
ब्राहमण पत्नी अपने पति की खोज मे निकली।
थोड़े दूर ब्राहमण को बेहौश पाया और उसके
पास में एक काला साप था जिसने ब्राहमण को दंश लगाया था, यह देख कर ब्राहमीण
पत्नी ज़ोर से चीख पड़ी। तभी वहा पार्वती माता प्रगट हुईं और उन्होने ब्राहमण पत्नी को
दर्शन दिये। पार्वती माँ नें ब्राहमण को भी जीवित कर दिया। और आशीर्वाद के रूप मे
जो व्रत पर्वती माँ ने ब्राहमण पत्नी को बताया था वह “जया पर्वती” का व्रत है।
दोनों पति-पत्नी पार्वती माता का आशीर्वाद लेकर घर वापस आए। और पूरी श्रद्धा के
साथ व्रत किया। और दूसरे साल मे ब्राह्मण के घर बेटे का जन्म हुआ।
जागरण – Wakening
जया पार्वती व्रत मे पाँचवे दिन की पूरी रात जागरण किया
जाता है। पूरी रात माता के गरबे गए जाते हैं। तथा सिनेमा घर में मूवी देखने जाते हैं।
घुमनें जाते हैं। और कई तरह के खेल खेलते हैं। सुबह स्नान आदि करके शिव-पार्वती के
दर्शन करके यह व्रत पूर्ण किया जाता है।
पाँच साल के बाद व्रत की पूर्णाहुति – Fast conclusion After 5 Years
व्रत के पाँच वे साल मे व्रत रखनें वाली कुमारिकायेँ और औरतें
व्रत पूर्णाहुति करतें है। जिसमे जागरण के बाद दूसरे दिन सौभाग्यवती औरतों को भोजन
के लिए आमंत्रित किया जाता है। और उन्हें माँ पार्वती का रूप मान कर कुमकुम और
चावल से टीका लगा कर भोजन करवाते हैं और उनसे आशीर्वाद ले कर भेट के रूप मे उन्हे शृंगार
की चीज़ें दी जाती हैं।
इस तरह से यह व्रत सम्पूर्ण किया जाता है। जया पार्वती की पूर्णाहुति
एक कुंवारी कन्या अपने पति के घर जा कर ही करती है। अगर किसी कन्या का विवाह ना
हुआ हो तो वह व्रत का पांचवा एक दिन व्रत और जागरण करती है, जैसे ही शादी हो जाती
है तब उसके बाद जया पार्वती आने पर इस व्रत की पूर्णाहुति कर लेती है।
विशेष - More
पहले के समय मे लडकीयां और विवाहित औरतें यह व्रत 20 साल तक
करती थीं जिसमे पहले पाँच साल जवार (एक प्रकार का अनाज) का एक वक्त का बिना नमक का
भोजन करने का अनुस्ठान करती हैं। , दूसरे पाँच साल बिना नमक का भोजन कर के व्रत करती हैं।
तीसरे पाँच साल सिर्फ “सामा” खा कर यह व्रत करती थीं।
और चोथे पाँच साल मूंग खा कर यह व्रत करती थीं।
और बाद मे इस व्रत की पूर्णाहुति कर देतीं थीं। कई औरतें जया पार्वती का व्रत 20 साल कर लेने
के बाद, पूर्णाहुति कर लेने के बाद भी, पति की लंबी आयु और जीवन रक्षा के लिए आजीवन भी करती हैं।
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