भारत में वर्षाऋतु का आगमन अंग्रेजी महीने जुलाई से
शुरू होता है और अक्तूबर महीने तक वर्षा रहेती है। वर्षाऋतु का समय विभिन्न देशों
और विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग हो सकता है। भारत देश खेती प्रधान देश है। बारिश
के मौसम का विश्व के हर प्रांत में अत्यंत गहेरा महत्व है। वर्षाऋतु को अपने दिव्य
और अलौकिक सौन्दर्य स्वरूप के कारण “ऋतुओं की रानी” कहे कर भी बुलाया जाता है। बारिश
का मौसम शुरू होने से पहेले पैड और पौधे लगभग जल रहित हो जाते है। तालाभ,
कुए और विशाल नदीयों के पानी भी सुख नें लगते है, तथा छोटी नदियां तो लुप्त
ही हो जाती है।
वर्षाऋतु के आगमन होने के पूर्व हर प्रकार के सजीव
प्राणी और मानवीयों का जीवन गरमी से बैहाल हो जाता है। जैसे ही बारिश की पहेली
बूंदें ज़मीन को छूतीं हैं, तो वातावरण में मीठी-मीठी सौंदी सी खुसबु आने लगती
है। ऐसा भी कहा जाता है की पहेली बारिश में नहाने से त्वचा के रोग (चमड़ी के रोग)
भी ठीक हो जाते हैं। वर्षाऋतु में तले हुए और गरम खाने मज़ा ही कुछ और होता है।
वर्षा ऋतु में जांबुन, लीची, खारेक, पीच, चैरि, और प्लम जैसे फल बहुतायत में आते हैं।
धरती पर वर्षा कैसे आती
है? How Rain Falls?-
धरा की सतह से पानी वाष्पित हो कर ऊपर आकाश में
जाता है, और फिर वह पानी शीतल हो कर पुनः धरा पर गिरता है,
इसी प्रक्रिया को वर्षा कहेते हैं।
वर्षा बनने की प्रक्रिया - Process Of Rain Water
वायु में मिला हुआ पानी का वाष्प ठंडे पदार्थों के
संपर्क में आते ही संघनन के कारण औसांक तक पहोंचता है और जब वायु का ताप औसांक से
नीचे गिर जाता है तब जल वाष्प, पानी की बूंदों या ओलों के स्वरूप में ज़मीन पर
गिरता है। इसी तरह वर्षा बनती है।
वर्षा मापन कैसे किया
जाता है? - How Does Rain Gets Measured?
किस जगह पर कितनी मात्रा में बारिश हुई है,
इस बात का मापन करने के लिए “rain
gauge” यंत्र का उपयोग किया जाता है। जब
किसी जगह पर पड़ने वाली बारिश का मापन करना हो तब, “rain gauge” यंत्र को उस निश्चित जगह पर, चुने हुए स्थान पर लगा
दिया जाता है, और बरसती वर्षा को माप लिया जाता है। वर्षा को
ज़्यादातर सेंटी मिटर, या इंच में मापा जाता है।
वर्षा मापक यंत्र एक खोखला बेलन जैसा यंत्र होता है,
जिस के अंदर के भाग में एक शीशी (बोतल) रखी होती है, और उसके मुहाने पर एक कीप
लगा होता है। बारिश का जल कीप के माध्यम से शीशी के अंदर जाता रहेता है। और फिर
बाद में उस जल को मापक यंत्र द्वारा माप लिया जाता है। इस यंत्र को खुले स्थान में
रखा जाता है, ताकि मापन सही तरह से बिना अवरोध के हो सके।
वर्षा के तीन प्रकार - The Main Three Types Of Rain
·
संवहनीय
वर्षा (convectional rain)
·
पर्वतकृत
वर्षा (aerographical rain)
·
चक्रवात
वर्षा (cyclonic rain)
संवहनीय वर्षा
संवहनीय वर्षा भूमध्य रेखीय प्रदेशों में लगभग हर
दिन होती है। ऐसा होने का कारण यह है की भू मध्य रेखा पर अधिक गरमी का मौसम रहेता
होने के कारण, समुद्रों से अधिक मात्र में पानी का वाष्प बन कर
वायु में आकाश की और जाता रहेता है।
पर्वतकृत वर्षा
भारत के ज़्यादातर हिस्सों में पर्वतकृत वर्षा होती
है। जब पर्वतों वाले विस्तार में वाष्प से भरी हुई हवाओं को ऊपर उठना पड़ता है। जिस
से पर्वतों के ऊपर जमे बर्फ के प्रभाव से और हवा के फ़ेल कर शीतल होने के कारण,
हवा का वाष्प जल की बूंदों के रूप में परिवर्तित हो कर ज़मीन पर बरस पड़ता है। इस
प्रकार की हवाए पर्वत के दूसरी और मैदान वाले विस्तार में नीचे की और आते ही गरम
हो जाती है और आस पास के वातावरण को भी अधिक गरम कर देती हैं। और दुनियाँ के बहुत
से पर्वतों वाले देशों में भी इसी प्रकार की वर्षा होती है।
चक्रवात वर्षा
चक्रवात वर्षा गरम और ठंडी वायु के टकराने (मिलने)
से उत्पन्न होती है। हल्की गरम वायु हमेशा ऊपर उठती है,
और भारी शीतल वायु नीचे की और जाती है इस लिए ऊपर जाने वाली वायु ऊपर जा कर बारिश
बरसानें लगती है। इसी प्रकार की वर्षा को चक्रवात वर्षा कहेते हैं।
भारत में बारिश के मौसम
में बहुतायत में उगने वाले फूल
· मॉनसून
कासिया –
यह एक पीले रंग के फूल
देने वाला पैड होता है। वर्षाऋतु के दौरान यह फूल काफी मनमोहक दिखते हैं। और इन
में गजब की खुशबू आती है। इस पैड के पत्तों की सब्जी भी बनाई जाती है। इस पैड के
बीज पशुओं के लिए एक उत्तम प्रोटीन स्त्रोत होते हैं। मॉनसून कासिया के पैड को
अच्छी तरह से उगने के लिए पूर्ति मात्रा में पानी और सूर्य प्रकाश की आवश्यकता
होती है।
·
गुलमोहोर
– Gulmohar
इस प्रकार के पैड तभी फूल देते
हैं जब बारिश अधिक मात्रा में लंबे समय तक होती रहे। इन पैडों को लगातार पानी की ज़रूरत होती है। इन पैड के फूल लाल चटक रंग के होते हैं। इन्हे खाने पर खट्टा मीठा
स्वाद आता है।
·
इंडिगो
फ्लावर – Indigo Flowers
इस प्रकार के पैड भी अधिक वर्षा होने पर ही बहुतायत में फूल देते हैं। इस प्रकार के फूल ज़्यादा तर नीले रंग के होते हैं। इस के अलावा इंडिगो फ्लावर सफ़ेद भी होते हैं।
इस प्रकार के पैड भी अधिक वर्षा होने पर ही बहुतायत में फूल देते हैं। इस प्रकार के फूल ज़्यादा तर नीले रंग के होते हैं। इस के अलावा इंडिगो फ्लावर सफ़ेद भी होते हैं।
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हिबिस्कस
फ्लावर – Hiebiskas Flowers
इस प्रकार के पैड को लगाना काफी आसान होता है। यह फूल लाल कलर के होते हैं और समय बीतने पर पीले रंग के होने लगते हैं। पतंगों को इस प्रकार के फूल अधिक मोहित करते हैं।
इस प्रकार के पैड को लगाना काफी आसान होता है। यह फूल लाल कलर के होते हैं और समय बीतने पर पीले रंग के होने लगते हैं। पतंगों को इस प्रकार के फूल अधिक मोहित करते हैं।
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केपेजैस्मिन
फ्लावर – Cape Jasmin Flowers
सजावट के कार्य में केपेजैस्मिन फ्लावर खूब जचते है। इन में बहुत ही मीठी सुगंध आती है। और यह दिखनें भी काफी सुंदर होते हैं। केपेजैस्मिन फूलों को सुगंध के राजा के नाम से भी जाना जाता है, इन फूलों का ईस्त्माल किसी प्रसंग में, decoration में करने पर, पूरी जगह महेक जाती है।
सजावट के कार्य में केपेजैस्मिन फ्लावर खूब जचते है। इन में बहुत ही मीठी सुगंध आती है। और यह दिखनें भी काफी सुंदर होते हैं। केपेजैस्मिन फूलों को सुगंध के राजा के नाम से भी जाना जाता है, इन फूलों का ईस्त्माल किसी प्रसंग में, decoration में करने पर, पूरी जगह महेक जाती है।
किसान वर्ग के लिए वर्षा ऋतु का महत्व - Monsoon Importance For Indian Farmers
वर्षा किसानों के लिए जीवनडोरी के समान है। खेती के
लिए जल की अधितम आवश्यकता होती है। फसल को अगर सही समय पर पानी ना मिले तो खड़े पाक
सुख जाते हैं। आधुनिक समय में किसान वर्षा के पानी को संचय करने के लिए बड़े बड़े
कुए और पानी की टंकी यां बनवाते हैं ताकि कम वर्षा होने पर संचित किया हुआ पानी
खेती में उपयोग किया जा सके।
कई बार वर्षाऋतु के समय जब वर्षा खिच जाती है,
तो किसान वर्ग और सामान्य वर्ग के लोगों के द्वारा वर्षा के देव यानी “इन्द्र देव”
से प्रार्थन की जाती है, ताकि जल्द उस क्षेत्र में बारिश हो।
अतिवृष्टि क्या होती है? - Heavy Rain Situation
कई बार, कई प्रदेशों में अधिक बारिश हो जाने पर जन जीवन
अस्त व्यस्त हो जाता है। वातावरण में बदलाव, अधिक प्रदूषण, तथा दूसरे अन्य scientific कारणों कि वजह से विश्व के अलग अलग प्रदेशों में अतिवृष्टि
(बाढ़) का प्रकोप होता रहेता है। इस प्रकार की वर्षा से कई बार बड़े पैमाने पर जान हानी,
और माल मत्ता का नुकसान होता है। ऐसी
विपदा के कारण आम जनता को काफी तकलीफ उठानी पड़ती है।
अतिवृष्टि के कारण सूर्य की किरणें बादलों के अवरोध
के कारण ज़मीन तक पहोंच नहीं पाती हैं। और सभी और दुर्गंध फ़ेल जाती है। नमीं वाला
माहौल बन जाता है। नमी वाले माहौल में कई तरह के कीड़े मकोड़े और जंतु का उपद्रव भी
बढ़ जाता है। ज़्यादा बारिश का पानी ज़मीन के ऊपर जमा रहेने के कारण कई तरह की बेकटेरिया,
और फफूंद से जुड़ी बीमारिया भी फैलने लगती हैं।
अधिक वर्षा के कारण कई बार ज़मीन के नीचे जमा पीने
के पानी का स्रोत और वर्षा का कीचड़ वाला पानी घुल जाता है,
और इस के कारण पाचन तंत्र को हानी पाहुचाने वाले जीवाणु हमारे पीने के पानी के
माध्यम से हमारे शरीर में दाखिल हो जाते है और शरीर को रोग ग्रस्त बना देते हैं। अधिक
वर्षा के कारण बाड़ का खतरा भी बढ़ जाता है।
अनावृष्टि क्या होती है? - Drought / No-rain
जब किसी क्षेत्र में कम पड़ती है या बिलकुल वर्षा
नहीं पड़ती है, तब उस क्षेत्र को अनावृष्टि ग्रस्त विस्तार या
सूखा ग्रस्त विस्तार कहा जाता है। सूखे के कारण, सूखा ग्रस्त प्रदेश के
पर्यावरण पर घातक प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। और उस क्षेत्र की तमाम फसलें भी सुख
कर नाश हो जाती हैं। पानी की भयंकर तंगी उत्पन्न हो जाती है। सूखे के कारण स्थानीय
अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है।
जिस क्षेत्र में अनावृष्टि की भयंकर विपदा आती है,
उस प्रदेश में कुपोषण समस्या, अकाल मृत्यु दर वृद्धि,
भूखमरा, और भयंकर रोगों का त्रांडव होने के आसार बढ़ जाते हैं। इस
प्रकार की विनाशक परिस्थिति के उत्पन्न होने पर उस प्रदेश की सरकार अपनी जनता के
लिए विषेस राहत packages मुहैया कराती है, कई स्वयंसेवी समूह और
दाता, ऐसे सूखा ग्रस्त विस्तारों के लोगों को आर्थिक मदद देने के लिए
भी आगे आते हैं।
वर्षा ऋतु में इतना ज़रूर करें - Health Tips For Rainy Session (Monsoon)
- पीने के पानी को दो बार कपड़े से छान कर गरम कर के ठंडा कर के ही पिये, ताकि दूषित पानी से होने वाले रोगों से बचा जा सके।
- अपने आसपास अगर कहीं पानी जमा हो रहा हो तो फौरन उसका निकाल करें, ताकि उसमे डेंगू और मलेरिया का रोग देने वाले मच्छर अंडे ना दे सकें। वर्षाऋतु में मच्छरों का उपद्रव काफी बढ़ जाता है। इस लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए।
- बरसात में अधिक भीगने से बचना चाहिए। बारिश के मौसम में infection लगने का खतरा अधिक होता है। बारिश के मौसम में रोड के पास लगे ठेलों से खाना खाने से भी परहेज करना चाहिए।
- वर्षा ऋतु में गरम हर्बल चाय का सेवन लाभदायी होता है। हर्बल चाय में जीवाणु रोधक शक्ति होती है।
- बारिश के मौसम में शरीर को ज़्यादा देर तक गीला रहेने देना नहीं चाहिए, ताकि ज़ुकाम और बुखार से बचा जा सके।
- वर्षा ऋतु के दौरान आने वाले हर signal fruits को खाना चाहिए। बारिश में रस, लस्सी, और पानी से लेज़ फल से दूर रहेना चाहिए। ऐसे तरल भोजन का सेवन करने से शरीर में सूजन आने और बदन दर्द होने की तकलीफ हो सकती है। नमी वाला वातावरण हो तब मध्यम या कम नमक वाला भोजन ही खाना चाहिए।
- बारिश के मौसम में चटाकेदार भोजन खाने की इच्छा बहुत होती है, पर ऐसा भोजन अधिक खाने से त्वचा से जुड़ी बीमारियाँ होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
वर्षा ऋतु एक उत्सव - Monsoon As A Festival
सुखी धरती वर्षाऋतु के पानी से अपनी प्यास बुझा कर
तृप्त हो जाती है। किसान बारिश होने पर नयी फसलें बोने लगते हैं। हर प्रकार के जीव
अपनी अपनी तरह से वर्षाऋतु आगमन की खुशी का इज़हार करते हैं... जैसे की मोर अपने
पंख फैला कर नाचता है, दूसरे अन्य पक्षी अपनी मधुर आवाज़ में चेहचहा कर
आनद प्रकट करते हैं। धरा तृप्त हो जाते ही कई तरह की वनस्पतियों और पैड पोधों को
उगाने लगती है। हर तरफ हरियाली छा जाती है। आकाश में इन्द्र धनुष के सात रंग भी
दिखने लगते हैं। सूर्यदेव भी बादलों के बिछ छुप कर लुकाछुप्पी खेल रहे हों ऐसा
प्रतीत होने लगता है।
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