मेरा नाम हैरी शर्मा है और मै गोवा से हूँ। यहाँ गोवा में मै एक वाइन
शॉप में बार टेंडर की जॉब करता हूँ। जितना भी कमाता हूँ उतना पैसा खर्चों में चला
जाता है। घर पर भी कम पैसे भेज पता हूँ। पापा काम से रिटायर्ड हो चुके हैं, इस लिए मेरी ज़िम्मेदारी
और भी ज़्यादा है। मैने कई बार बड़ा हाथ मार कर जल्दी पैसे कमा लेने की कोशिष की है, पर हर बार मुह कि ही खाई
है। पिछले दिनों तो पैसे कमाने के चक्कर में जान जाते जाते बची थी।
आज मै वही danger किस्सा इधर share करना चाहता हूँ। उस दिन
दौलत तो नहीं मिली, पर जंगली जानवरों और रहस्यमय भेड़िये जैसे पहाड़ी इन्सान से पाला पड़ गया था, मुझे आज भी पता नहीं की
वह भूत था, या
इन्सान।
मुझे
पक्का याद है उस दिन शनिवार था। और जॉब से मेरी छुट्टी थी। मै आराम से हॉस्टल रूम
पर टीवी में fashion TV देख रहा था। और पोपकोर्न
खा रहा था। तभी मेरा बचपन का पनवती छाप दोस्त अज्जु घर पर आया। वह पूरा हाँफ रहा
था, मुझे लगा
की उसके पीछे मेरी गली के कुत्ते दौड़े होंगे। पर ऐसा कुछ भी नहीं था।
उसने
अपनी जेब से एक कटा फटा नक्शा निकाला, और वह बोला की यह हमारी किस्मत की चाबी है। अज्जु बोला की यहाँ से तकरीबन
15 किलोमीटर दूर समंदर किनारे के पास एक वीरान इलाका है, उसी जगह का यह नक्शा है।
वहाँ पर राजे रजवाड़े के समय का खज़ाना गढ़ा है।
मैने अज्जु को बालों से पकड़ा, और खींच कर रूम से बाहर
निकाला। मै फालतू की चीजों में अपना शनिवार नहीं गवाना चाहता था। लेकिन किसी तरह
उसने मुझे अपने साथ कर ही लिया। (अब उसने सारा खर्चा उठाने और होटल में खिलाने की
बात की तो कौन मना करे)। हम दोनों कुल्हाड़ी, फावड़ा और टौर्च ले कर
निकल पड़े खज़ाना खोजने।
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जैसे ही उस जगह पर कदम रखा तो उल्टी सी आने लगी। मैंने अज्जु को बोला
की चल यार वापिस चलते हैं, कुछ
ठीक नहीं लग रहा यहा पर... लेकिन बात मान जाए उसे अज्जु थोड़ी कहेते हैं।
हम घनी जाड़ियों के अंदर और अंदर जाने लगे। उस जगह पर दिल दहेला देने
वाला सन्नाटा था।
आस पास खोखले पैड के तने, सुखी काँटे दार जाडीयाँ
और सुखी बंजर ज़मीन ही थी। उस जगह थोड़े थोड़े अंतर पर मरे हुए कीड़े और जानवर के शव
पड़े थे। पता नहीं क्यूँ पर, मुझे उस दिन पता चल गया था की हमारे साथ कुछ तो बुरा होने वाला है।
अज्जु एक जगह आ कर रुक गया और बोला की नक्शे के हिसाब से येही वह जगह
है। हमने मट्टी खोदना शुरू किया। मैंने थोड़ी ही देर में एक मिटर तक का गहेरा गड्ढा
खोद डाला। और मै थोड़ी सांस लेने के लिए रुका। तभी मैंने गड्ढे की और मूड कर देखा
तो गड्ढा पूरा मिट्टी से दब चुका था, और उस पर पैरों के निशान
भी थे।
मैंने अज्जु को वही सिर पर टपली दे मारी। मै बोला की ऐसा मज़ाक मुझे
पसंद नहीं है, तूने
गड्ढा क्यूँ ढक दिया...? अज्जु बोला की माँ कसम मैंने गड्ढा नहीं ढका। मै तो अपना गड्ढा खोद रहा
हूँ मै वहाँ आया ही नहीं।
मैंने उसको कहा की मस्ती मत कर जूठ मत बोल, तेरे पैरों के निशान है
वहाँ पर। अज्जु उधर आया और बोला की यह तो नंगे पैरों के निशान है भाई, मैंने और तूने तो यहाँ
कभी जूते उतारे ही नहीं, और यह पैर के निशान तो देख हमारे पैरों से डेढ़ गुने बड़े हैं। तभी अज्जु का
ध्यान उस खड्डे पर गया जिसे वह खोद रहा था। उस गड्ढे में भी मिट्टी भर दी गयी थी, और उसमें भी विकराल पैरों
के निशान थे।
हम दोनों की चोटी खड़ी करने के लिए इतना डर काफी था। अब हम जान गए थे
की इस वीराने में हमारे सिवाह और कोई तीसरा भी मौजूद है, जिसके पैरों के पंजे करीब
हम से डेढ़ गुने बड़े हैं और वह नंगे पैर यहाँ घूम रहा है। वह कोई इन्सान तो हो नहीं
सकता चूँकि दूर दूर तक चारो और, वहाँ से देखा जा सकता था।
हम दोनों नें सब कुछ समेट कर वहाँ से भागने में ही अपनी भलाई समजी।
जैसे ही हम वहाँ से भागे तो एक भयानक चीख सुनाए दी। हम दोनों के हाथ से फावड़े और
कुल्हाड़ी वहीं नीचे गिर गए। और हम दोनों almost अपने पैर हाथ में ले कर
भागने लगे।
अचानक एक जंगली भैंसा हमारे सामने आ गया। हमे वहीं रुक जाना पड़ा। पता
नहीं हमने उस जंगली भैंसे का क्या बाप मारा था, उसने हमें फिर से घने
वीराने जंगल की और भागने पर मजबूर कर दिया। मै और अज्जु करीब उसी जगह आ गए जहां
हमने खड्डे खोदे थे। भैंसा अब भी हमसे सिर्फ 10 मिटर की दूरी पर था। और वह हमे ही
घूर रहा था, जैसे
की हम उसकी बेटी को छेड़ कर भागें हों।
अचानक उस भैसें नें हमारी और गज़ब की दौड़ लगाई, पलक जपकते ही हम भी एक
पास ही के सूखे पैड के तने पर चड़ गए। हमने सोचा की यह
अड़ियल भैंसा कुछ देर में शांत हो कर चला जाएगा। लेकिन वह तो हमारे सामने ही अड्डा
जमा कर बैठ गया। जैसे की हमारे नीचे उतरने का ही इंतज़ार कर रहा हो।
एक तो डर भी लग रहा था और हंसी भी आ रही थी चूँकि पहेले कभी ऐसा दबंग
भैंसा पीछे पड़ा नहीं था। मैंने अज्जु को मज़ाक में बोला की ये तेरा ससुर अंधेरा
होने से पहेले नहीं गया तो, मैं
तुझे इस पैड से नीचे धक्का दे दूंगा।
अज्जु भी थोड़ी देर डर भूल कर हँसने लगा। मैने और अज्जु नें एक तरकीब
सोची, की
सुखी डालियाँ भैंसे को मारते हैं और ज़ोर ज़ोर से आवाज़े करते हैं, शायद ये उठ कर दूर चला
जाए। हमने जैसे ही उसकी और एक सुखी डाली फैंकि तो वह भैंसा ऐसे खड़ा हुआ जैसे विराट
कोहली बाउनट्री के अंदर से गैंद उठा कर खड़ा होता है।
वह सीधा उस पैड की और भागा, जिस पैड के ऊपर हम दोनों
नें अपनी डरी हुई तशरीफ टीका रखी थी। धड़ा धड़ उसने अपना सिर पैड के तने पर मारना
शुरू कर दिया॥ हम दोनों पागलों की तरह चीखने लगे। हमे तो लगा की थोड़ी देर में हम
ज़मीन पर होंगे। लेकिन तभी हमारी फूटी किस्मत पर ऊपर वाले को थोड़ा रहेम आया।
वहाँ पर एक भैंसीय आई। अब भैंसा बिलकुल gentleman की तरह behave करने लगा था। पैड पर सिर
पटकता भैंसा अब उस खोखले पैड से अपनी गरदन सहेलता हुआ फिल्मी कालियां खिलाने लगा।
मैंने अज्जु से कहा की अब यही मौका है, यह भैंसा आशिक मिजाज़ी में
मस्त है तो, पीछे
से पैड से उतर कर भाग निकलते हैं।
अज्जु बोला की हाँ तू उतर पहेले... भैंसे नें कुछ नहीं किया तो मैं
भी नीचे आ जाऊंगा। उस वक्त अज्जु को नाक पर कोहनी से मुक्का मारने को दिल किया।
मैंने उसे कहा... “लक्कड़बग्घे” तूने मुझे यहा
फसाया है... पहेले तू जा... तू ज़िंदा बचा तो मैं कुदूंगा।
अज्जु हस्ता हुआ नीचे उतरने लगा। अभी उसने ज़मीन पर एक पैर रक्खा ही
था की... इस बार भेंसा नहीं पर वह भैंसीय अजजू के पीछे भागी। मुझे तो लगा की वह
तूफानी भैंसीया, अज्जु
की तशरीफ तौड़ कर ही दम लेगी। पर खुश नसीबी से अज्जु सामने वाले सूखे पैड के तने पर
चड़ गया। अब हम दोनों एक दूजे से करीब पाँच से सात मिटर की दूरी पर थे, और नीचे ज़मीन पर एक
खतरनाक “जोड़ा” हमारी निगरानी कर रहा था।
धीरे धीरे सूरज भी ढलने लगा। अब हम दोनों को चिंता हो रही थी। एक तो
उस विकराल पैरों के पंजों का डर था ऊपर से इन भूत जैसे भैंसों का खौफ। एक तरफ
कुंवा और दूसरी तरफ खाई। और ऊपर से हमारा सामान भी गिर गया था। जेब में एक टौर्च थी, और पार्लेजी बिसकुट का
छोटा पैकेट था... बस।
वहाँ शाम के अंधेरे में अजीब अजीब आवाज़ें आने लगी। मुझे अज्जु बोला
की उसे मेरे पास आना है, मेरी
फिरसे हंसी छूट गयी। मैने कहा की... नीचे बैठे, इन... तेरे father in law और mother in low से permission मांग ले, फिर आ जाना। और अगर तूने insurance करा रखा हो तो ही risk लेना। अब पूरी तरह अंधेरा हो चुका था, उन भैंसों की भी सिर्फ
चमकती आँखें ही दिख रही थी। मैने टौर्च जला ली।
धीरे धीरे भैंसों का interest भी हम मे से कम हो गया।
वह उठ कर जाने लगे। मैंने और अज्जु नें राहत की सांस ली। पर अब वहाँ घोर अंधेरा था
तो हम दोनों में रात वहीं बिताने का फैसला किया। भैंसों के जाते ही अज्जु लपक कर
वापीस मेरे वाले पैड के तने पर चड़ आया। हमने अंधेरे में वोह बिस्कुट खाये, जो हम रास्तों के कुत्तों
को खिलाने के लिए साथ लाये थे।
थोड़ी देर हुई तो हमारी आँखें नींद से घिरने लगी। अज्जु तो खरराटें
मारने लगा। मेरी भी कुछ देर के लिए आँख लग ही गयी। तभी अचानक मुझे अंधेरे में लाल
अंगार जैसा नज़र आया। मैंने फौरन उस और टौर्च की रोशनी फैंकि, मेरे तो हौश उड़ गए जब
मैंने देखा की वह अंगार उस जगह पर जल रहा है जहां मैंने और अज्जु नें गड्ढे खोदे
थे। मैने अज्जु को फौरन जगा दिया। उन दोनों गड्ढों पर अंगार थे और उनमे से धुए उठ
रहे थे। उस रहस्यमयी नज़ारे को देख कर हम दोनों के तो रोंगटे खड़े हो गए।
मैने अज्जु को बोला की भाई तू decide कर ले। भूत के हाथों मरना है की भैंसों के हाथों मरना है। अब भी हमारे पास
एक टौर्च है। और हमारी टांगें भी सलामत है। भगवान का नाम ले कर अंधेरे में ही भाग
निकलते हैं। अज्जु बोला की हाँ यार कौशीस करते हैं, वैसे भी यहाँ तो मौत दिख
ही रही है। हम दोनों पैड से नीचे उतरे और अंधरे में ही डरते काँपते, टौर्च के सहारे रास्ता
खोजने लगे।
करीब सौ मिटर चले होंगे तो, हमारे रास्ते में एक
विकराल पहाड़ी परछाई आ खड़ी हुई। उसने काले कपड़े पहेन रखे थे। उसके दाँत चमक रहे थे।
उसकी आँखें लाल अंगारों सी दिख रही थी और वह हम से करीब डेढ़ गुना लंबा था।
मैंने आवाज़ लगाई कौन हो तुम...? पर उसने जवाब नहीं दिया।
मैंने फिर बोला... कौन हो तुम...? इस बार उसने डरावनी आवाज़ में जो आवाज़ निकाली मै आज भी उस आवाज़ को याद कर
के काँप उठता हूँ। मैंने और अज्जु नें फिर उल्टी दौड़ लगाई। हम फिर से उसी जगह आ
पहुंचे। जहां हमने गड्ढे खोदने का कांड किया था। मै और अज्जु फिर से उस पैड के तने
पर सवार हो गए। हम दोनों पसीने से तरबतर थे, चूँकि हमें वह विकराल
इन्सान पक्का कोई भूत प्रेत लग रहा था, शायद उसी नें हमारे खोदे हुए गड्ढे पैक किए थे।
कुछ देर हुई तो वह विकराल जीव हमारे सामने वाली जाड़ियों से बाहर आया।
उसे फिरसे देख कर हम दोनों की जान हलक में अटक गयी। मैंने टौर्च उसकी आँखों की और
मारना जारी रखा। थोड़ी देर वो भयानक जीव वहीं घूमता रहा, फिर अचानक वोह, पता नहीं कहाँ गुम हो
गया। मै और अज्जु उसे अंधेरे में ही चारो और खोजने लगे। पर वह दिखा नहीं।
तभी थोड़ी देर बाद हमारा पैड हिलने लगा। मैंने अज्जु से कहा की “रेवड़ी चोर” इस वक्त तो मस्ती मत कर।
उसने बोला की भाई मेरी तो फटी पड़ी है मै कुछ नहीं कर रहा। पैड अपने आप ही रहा है।
मुझे लगा की भूकंप आया क्या...। तभी मैंने नीचे ज़मीन की और टौर्च मारी।
मैंने जो नज़ारा देखा, उसे देख कर मेरी पतलून
गीली हो गयी। वहाँ नीचे वही विकराल जीव खड़ा था और वही पैड हिला कर हमे गिराने की
कौशीस कर रहा था। अज्जु उसे इतने करीब देख कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा और पैड की सुखी
डालियाँ उसे मारने लगा।
वह भयानक जीव वहेशी जानवर की तरह हँसे जा रहा था, और पैड के तने को हिलाये
जा रहा था। मैंने और अज्जु नें आखरी बार भगवान को याद कर लिया। चूँकि नीचे गिरने
पर मौत पक्की थी।
तभी अचानक उसके धक्कों से, पैड का तना जड़ से उखाड़
गया। और धड़ाम से सूखा पैड हम दोनों को ले कर ज़मीन पर आ गिरा।
चोट के मारे हम दोनों की चीखें निकल गयी। उस विकराल भेड़िये के लिए अब
हम लाचार शिकार थे। वह नंगे पैर ही था। उसके पैरों पर बड़े बड़े नुकीले नाखून थे।
उसके पैर मेरे सिर के पास थे। और उसके शरीर से अजीब गंध आ रही थी। मुझे सिर्फ इतना
ही याद है की उसने मेरे चहेरे पर हाथ रखा था, और डरावनी आवाज़ में वह
घुररा रहा था। तभी मै चोट और डर के मारे बेहोश हो गया।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो मै वहीं ज़मीन पर ज़िंदा पड़ा था। और लैटे
लैटे ही मैंने अज्जु को ढूँढना शुरू किया। अज्जु वहाँ नहीं था। मेरा तो दिल दहेल
गया। मुझे लगा की पक्का वही भयानक भेड़िया मेरे दोस्त को उठा ले गया। मै वहीं ज़मीन
पर बैठ कर रोने लगा। तभी मैंने देखा की वह ज़ालिम जोड़ा (भैंसों का जोड़ा) फिर से
मेरी और दौड़ा आ रहा है। मुझे फिर से उठ कर दूसरे सूखे पैड पर चढ़ना पड़ा। मेरी आँखों
में आँसू थे। चूँकि मैंने अभी कुछ देर पहेले ही अपने जिगरी दोस्त को खोया था।
मैं भगवान को याद करने लगा... और बोला की... या तो तू हम इन्सानों को
मत बना, या
फिर इन ज़ालिम भेसों को मत बना। थोड़ी देर हुई तो मुझे खरराटों की आवाज़ सुनाए दी।
मैंने मूड कर देखा तो उसी पैड पर दूसरी डाली पर “कमीना”
अज्जु सो रहा था। मुझे समज नहीं आ रहा था की ऐसे दोस्त को गोली मारू
या तौप के गोले से उड़ा दूँ। वह मुझे ज़मीन पर बेहौश छौड़ कर पैड पर जा चड़ा था। मैं
सरक कर उसकी डाली पर गया और उसे जगाने के लिए, ऐसी जगह पर लात मारी
की... मै यहाँ बता नहीं सकता।
वह जाग कर बोला की तुजे नीचे नींद आ गयी थी, तो तेरी नींद खराब ना हो
इस लिए तुझे उठाया नहीं। और इसी लिए मै अकेला इधर आ कर सो गया। मुझे समज नहीं आ
रहा था की अज्जु दिमाग से पैदल है, की उसमे दिमाग ही नहीं है। मैं नें उसे कहा की पैड से गिरने के बाद जो
जानवर (इन्सान) खड़े ना हो सके, उन्हे बेहौश हुए कहेते हैं... वह सोये नहीं होते....... लफरजंडिस।
थोड़ी देर जगड़ा करने के बाद हम दोनों में फिर से सुलह हो गयी और हम फिर से वहाँ से
निकलने का उपाय ढूंढने लगे।
करीब दो पहर हुई तो वहाँ police
patrolling party के
जवान की जीप आ पहुंची। एक officer हमारे पैड के पास आ कर
खड़ा हो गया और कहेने लगा की ... क्या बात है... दोनों ढीले हो क्या... इस घनी
जाड़ियों में क्या कर रहे हो...? हनीमून मनाने आए हो क्या...?। उसके इस मज़ाक का हमे
रत्ती भर बुरा नहीं लगा, चूँकि हमे पता था की वह इन्सान उस वक्त, हमारे लिए भगवान के भेजे
हुए दूत के समान था। हम फौरन वहाँ से उतरे। और अजीब बात थी... खाखी वर्दी देख कर
भैंसे भी उधर से भाग गए।
हमने अपना सामान ढूंढा, और ख़ज़ाने को खोजने के इस
रोमांचक, डरावने
सफर का अंत किया। इस घटना के एक महीने बाद अज्जु फिर से एक नक्शा ले कर मेरे हॉस्टल
के दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ।
मै ने उसके पैर पकड़ लिए और बोला की... तुझे मेरी जान ही निकालनी है
तो रास्ते से बड़ा सा पत्तर ले आ और मेरे सिर पर दे मार... मै खुशी खुशी मर जाऊंगा।
पर अब तेरे adventures अभियानों से मुझे दूर ही
रख। उस बार तो अज्जु वापीस लौट गया, पर मुझे पता था की अज्जु कुत्तेश कुमार की दूंम है, कुछ ही दिनों में वह नयी scheme के साथ फिर आएगा। -
“Keep Smiling” – Thanks for
Reading
Beautiful story..life mein ispiration aur motivation ke liye ye bahut jaruri hai. Thanks buddy.
ReplyDeleteMy plasure, brother. Stay connected for more comic stories.
Deletebhai aapne konsi theme apply ki h btaoge kya.....
ReplyDeleteaap is theme ko premium blogger template website se paa sakte hai.
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