हमारे देश की “गंगा” नदी, समस्त भारतवर्ष की नदियों में सर्वोच्च प्रसिद्ध और सर्वाधिक पूजनीय है। गंगा नदी का उद्गमन स्थान गंगोत्री बताया जाता है। गंगा नदी हिमालय के उत्तर भाग से होते हुए नारायण पर्वत के पाशव से होते हुए,ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग, विंध्याचल, वाराणसी, पाटली पुत्र (पटना), मंदरगिरि, भागलपुर, बंगाल से होती हुई गंगा सागर में समा जाती है।
गंगा नदी को देवनदी, भगीरथी, मन्दाकिनी, देवपगा, और विष्णुपगा नाम से भी पहचाना जाता है। हमारे देश के अनेक पवित्र तीर्थ स्थान गंगा नदी के किनारे पर स्थित हैं। भारत देश में अगर गंगा नदी सुख जाए तो हमारे देश का एक बड़ा हिस्सा सूखा और बंजर बन सकता है, इस लिए गंगा नदी उत्तर भारत विस्तार की जीवन रेखा है। हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में गंगा नदी का विस्तार से वर्णन किया गया है। रामायण और महाभारत और विष्णुपुराण जैसे जैसे भारतीय प्राचीन ग्रंथों में गंगा नदी को अति पावन और पूजनीय बताया गया है।
हमारे देश के चार बड़े राज्यों की तट सीमा गंगा नदी को छूती है। जिन राज्यों में बंगाल, बिहार, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश। गंगा जिस जिस विस्तार से गुजरती है उस प्रदेश को बेहद फलद्रूप यानी उपजाऊ बना देती है। भारत के मध्यभाग को गंगा का मैदान कह कर भी संबोधित किया जाता है। देश के विकास और समृद्धि के लिए गंगा नदी का जतन करना परम आवश्यक है। आधुनिक समय में जिन जिन विस्तार में गंगा नदी की कृपा है, उस विस्तार में व्यापार उद्योग पुर बाहर खिले हुए हैं। कई गांवों की खेती और कई बड़े बड़े व्यापार उद्योग गंगा नदी के नीर पर निर्भर है। गंगा नदी अनगिनत मानवीयों, पशु पक्षियों और जंतुओं की मुख्य दैनिक जरूरत पानी उन्हे मुहैया कराती है।
भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग गंगा नदी के प्रति हमारी भी कुछ ज़िम्मेदारी है। जिस तरह हम अपनी जननी माता का सम्मान करते हैं, उसे प्यार देते हैं ठीक वैसे ही हमें गंगा नदी को स्वच्छ बनाए रखना चाहिए, उसे सम्मान देना चाहिए और अगर कोई व्यक्ति गंगा नदी के आसपास गंदगी फैलाये तो उसे रोकना चाहिए। क्यूँ की जल है तो जीवन है। - “जय गंगा मैया”
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