Wednesday, June 22, 2016

Krishna Avtaar Full details कृष्ण लीला



पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म, भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यता अनुसार सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग, कलयुग कुल चार युग होते हैं, जिसमे द्वापरयुग मे श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। 


द्वापरयुग मे जब हर तरफ धर्म की हानी हो रही थी, और पाप बढ़ रहा था तब पृथ्वीदेवी, ब्रह्माजी, और अन्य समस्त देवतागण साथ मिल कर क्षीर सागर के तटपर भगवान विष्णु के पास सहायता मांगने गए। और तब भगवान विष्णु ने उन सब को वचन दिया की वह कृष्ण रूप मे अवतार लेंगे और धर्म का स्थापन करेंगे।

“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर भवति भारत अभ्युस्थांनम अधर्मसय तदात्मान्म शुर्जांयहम परित्राणम साधुनम विनासयज दुष्कृतम।“


श्रीकृष्ण जन्म की कथा और देवकी-वसुदेव को कारावास:-

मथुरा नरेश कंस एक अत्याचारी राजा था। वह उग्रसेन नामक राजा का बेटा था। उसका आतंक चारो और था। उग्रसेन राजा ने जब कंस को रोकना चाहा तो कंस नें अपने पिता को ही बंदी बना कर कारागार मे डाल दिया और खुद मथुरा का राजा बन बैठा।
कंस उसकी छोटी बहन देवकी का विवाह यदुकुल के वसुदेवकुमार के साथ करके उसे विदा कर रहा था, उसी अवसर पर एक ऋषि नें ऐसी भविष्यवाणी सुनाई थी की देवकी का 8 वा पुत्र कंसका वध करेगा। अपनी आने वाली मृत्यु को पराजीत करने के लिए, कंस ने अपनी बहन देवकी और वसुदेवकुमार को भी बंदी बना कर कारागार में डाल दिया।   
मथुरा के कारागार मे बंद देवकी ने अपने पहले पुत्र को जन्म दिया तब कंस ने वहाँ आ कर उसे वही दीवार पर पटक कर मारा दिया। इस तरह जब सात बेटे मारे गए तब श्रीकृष्ण ने देवकी के गर्भ से कारागार मे जन्म लिया।

श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व :-

भगवान श्री कृष्ण का जन्म, पृथ्वी पर धर्म को पुनःस्थापित करने, और कर्म का महत्व बताने के लिए हुआ था। श्रीकृष्ण का गुणगान अतिपवित्र है। ऐसा माना जाता है की सम्पूर्ण प्रकृति श्रीकृष्ण से उतपन हुई है, और सृष्टि का हर एक कण कण श्रीकृष्ण के आधीन है। श्रीकृष्ण कार्य की सिद्धि के लिए कहते हे की साम, दाम, दंड, और भेद सभी का उपयोग करना चाहिए जब कार्य धर्म युक्त हो। और भगवान श्री कृष्ण हर चीज मे आनंद उत्सव को भी मानते थे। उन्होने पृथ्वी को यह वचन दिया था की पृथ्वी को पापियों और अधर्मियों से मुक्त कराएंगे। महाकाव्य महाभारत मे धर्म युद्ध शुरू होने से पूर्व अर्जुन को भी सम्पूर्ण गीता सार सुना कर उन्होने कर्म का महत्व समजाया था। श्रीकृष्ण का जन्म करीब 4500 साल पहले हुआ था ऐसा माना जाता है।

श्रीकृष्ण से उत्पन हुई प्रकृति और नारायण की कथा

जब श्रीकृष्ण ने पाया की जगत सून्य अवस्था मे है, तब इच्छा मात्रसे भगवान श्रीकृष्ण ने जगत की रचना शुरू की। श्रीकृष्ण के दक्षिण पार्श्व से जगत के महत्व पूर्ण गुण प्रकट हुए। और उनही गुणो मे पाँच रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द ये पाँच विषय प्रकट हुए है।
और फिर श्रीकृष्ण में से कौस्तुमणिधारी चतुर्भुज श्रीविष्णु प्रकट हुए। उनका रूप श्याम था, और वह पीले वस्त्र, आभूषण और वनमालासे सुसज्जित थे। उनके शास्त्रों मे शंख, चक्र, गदा, पद्म और शारंग धनुष थे। देवी लक्ष्मीजी श्रीविष्णु के वक्ष स्थल मे बिराजमान थें। और जगत के पालन हार, साक्षात श्रीविष्णु भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति कर रहे थे। ऐसा माना जाता है की भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से ही समस्त प्रकृति संचालित होती है।  

श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव और श्रीकृष्ण जन्म की कथा

वसुदेव और नंदगाव के मुखिया नंदजी अच्छे मित्र थे। वसुदेव को देवकी के साथ बंदी बानकर रखने पर भी कोई कंस का विरोध नहीं करपता था। जब वसुदेव ने उनकी दूसरी पत्नी रोहिणी और पुत्र बलदेव जो की असल मे देवकी और वसुदेव का ही पुत्र था। वसुदेव के कारागार मे मिलने की अनुमति कंस से रोहिणी ने लेकर वो देवकी को मिलने आया करती थी। जब बलदेव का जन्म होने वाला था तब देवकी की हालत देख के रोहिणी ने योग से देवकी के सातवे गर्भ को अपने साथ ले गई और मथुरा से दूर नंदगाव मे जहा नंदजी रहते थे। वहा जन्म देकर उनका लालन पालन करने लगी।
और अब आया 8 वा गर्भ जो की स्वयं भगवान श्री कृष्ण के जन्म होना था। श्रावण सूद 8 मे सारे मेघ बरस रहे थे तब रात के 12 बजे स्वयं भगवान नारायण प्रकट हुए।

श्रीकृष्ण का गोकुल मे आगमन लीला और नंद के घर उत्सव :-

वसुदेव और नंदगाव के मुखिया नंदजी अच्छे मित्र थे। श्रीकृष्ण ने जब जन्म लिया तब कंस को पता चलते ही वह उन्हे मारने जरूर आएगा वह उन्हे पता था। इस लिए पहलेसे ही रोहिणी के साथ नंदजी को यह सूचना देदी थी की श्रीकृष्ण को नंदगाव मे छुपा कर बड़ा करे। जब श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तब वसुदेव ने एक टोकरी मे कपड़े मे लपेट कर चलने लगे तभी लोहे की बेड़िया तुट गई और सारे प्रहरी योगमाया के प्रभाव से सो गये, और वसुदेवजी श्रीकृष्ण को नंदगाव छोड़ आये, जहा पर नंदजी की पत्नी यशोदा ने योगमाया को जन्म दिया था। उसे ले आए। उन्होने यह सोचा की यह तो कन्या है इस लिए कंस उसे नहीं मरेगा।
नंदजी की पत्नी यशोदा ने पुत्र को जन्म दिया हे यही बात बाहर आई क्यौकी, जब यशोदा ने पुत्री को जन्म दिया था। वो भी यह बात नहीं जानती थी। उसने आखे खोली तब उसके पास तो श्रीकृष्ण को ही राख दिया गया था। और अब पूरे नंद गाव मे उत्सव मनाया जा रहा था चूँकि सब समज रहे थे की नंद के घर बेटा हुआ है।
जब श्री कृष्ण मथुरा से नंद गाँव आये तो सारी प्रकृति और सवर्ग के समस्त देवता नंदगाव मे आ गये, और हर तरफ खुशी की लहेर दौड़ गयी। हर ओर एक ही शोर था। “ नन्द के घर आनंद भयो नन्द के लाल की जय ”  
बाल अवस्था मे श्रीकृष्ण ने राक्षसो का वध किया, वृंदावन मे कालीयानाग से यमुना के नीर को ज़हर से मुक्त किया, गोवर्धन लीला कर के इन्द्र को ज्ञान दिया और ब्रह्मा को माया का दर्शन कराया।  

कंस वध की कथा

श्रीकृष्ण की बाललीला और किशोरलीला के समाचार जान कर कंस को यकीन हो गया था की कृष्ण ही देवकी का 8 वा पुत्र है और वही स्वयं नारायण का अवतार हे। अब कंस यदुवंशी उद्धव को श्रीकृष्ण को मथुरा लाने को भेज कर मरवाने की कुटिल नीति क प्रयोग कर के, श्री कृष्ण को बड़े बड़े मलो (पहेलवानों) से भिड़वाता है। जहा श्रीकृष्ण अब बंसी राधा सखी के पास ही छोड़कर कर कंस वध के लिए मथुरा आते है। आते ही यज्ञ का धनुष तोड़ कर यह एहसास कंस को कराते है की वो ही उनका अंत करने वाले है। और सारे मलो के अंत के आखिर मे कंस को भी मलय युद्ध कर के उसका अंत कर देते है। उसके पश्चात श्री कृष्ण, देवकी, वसुदेव और राजा उग्रसेन को कारागार से मुक्त करवा के फिर से उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाते है। 

श्रीकृष्ण गुरुकुल मे विद्याभयास और गुरुदक्षिणा और विश्वामित्र सुचन :-

श्रीकृष्ण के लिए विद्याभ्यास करने के लिए गुरुकुल गए। श्रीकृष्ण ने समस्त वेदों का ज्ञान वहाँ  ग्रहण कर किया। वहा उन्हे एक मित्र मिला जो गरीब ब्राह्मण पुत्र था, उनके इस मित्र का नाम सुदामा था। कृष्ण सुदामा की मित्रता, मित्रता का प्रतीक मानी जाती है।
उनके गुरु संदीपनी का एक ही पुत्र था जो यात्रा के दौरान समुन्द्र मे डूब गया था, गुरु दक्षिणा देने का समय आ चुका था। कृष्ण अपने गुरु से उस बारे में बात करने जाते हैं। तभी गुरु माता ऋषि संदीपनी से कह रही होती हैं की कृष्ण तो भगवान है वह हमारे समंदर में डूब गए बच्चे को जीवित कर सकते हैं ना...  ये बात श्रीकृष्ण ने सुनी और वो समुद्र मे जा कर गुरुपुत्र को ले आए, वहा उन्हे पंचजनय शंख भी प्राप्त हुआ था।
कृष्ण जब गुरु की आज्ञा से मथुरा वापस निकल रहे थे तब विश्वामित्र ने श्रीकृष्ण को पापियों का नाश करने के लिए कृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया, और मथुरा पर हो रही चढ़ाई से मथुरा को बचाने की बात कही। मथुरा आते ही शत्रुओं का नाश करके कृष्ण ने समुन्द्र मे द्वारिका का निर्माण विश्वकर्मा से करवाया, और सारे मथुरा वासीयों को योग से द्वारिका मे बसा दिया।

श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन की कथा

श्रीकृष्ण को उनके गुरु ने एक दिन खीर का प्रसाद भिजवा कर यह कहा की उस खीर को पूरे शरीर पर लेना, गुरु की आज्ञा अनुसार भगवान श्रीकृष्णने पूरे शरीर पर खीर का लेप लगा लिया। उन्होने अपने पैर के तलवों पर खीर का लेप नहीं लगाया, चूँकि वह एक प्रसाद था।
श्रीक़ृष्ण भगवान के गुरुदेव नें वह खीर का लेप दिव्य शक्तियों से अभी मंत्रित कर के भेजा था। उस लेप के लगाने से उनका शरीर वज्र का बन गया। पर पैर के तलवों पर लेप नहीं लगाने से वह शरीर का हिस्सा सामान्य रहे गया। या शायद यू कहें की भगवान श्री कृष्ण नें स्वधाम गमन के लिए एक मार्ग खुला छौड़ रखा था।     
यदुकुल वंश के विनाश हो जाने के बाद श्रीकृष्ण भालका मे पैड के नीचे बैठे थे, तभी पत्तों के बीछ मे श्रीकृष्ण का पैर, एक पक्षी की भांति नज़र आ रहा था।
भालका वन में शिकार करने आए एक पारधी नें भगवान श्रीक़ृष्ण के पैर को एक पक्षी समज कर उस पर वाण चला दिया। वाण सीधा उनके पर के तलवे में जा लगा, और वह स्वधाम चले गए। श्री कृष्ण के देह को अग्नि चीता को नहीं सौपा गया था। उनके बड़े भाई बलदेव के द्वारा उन के देह को समंदर में प्रवाहित किया गया था। और फिर बलदेव भी योगबल से गौकुल धाम चले गए।     



  





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