एक बार भरी दो पहर मे एक चतुर लोमड़ी अंगूर के पैड के पास से गुजरती है, लोमड़ी अंगूर तोड़ने के लिए जपट्टा मारती है, पर अंगूर मुह मे नहीं आते, लोमड़ी फिर एक बार प्रयास करती है, पर कोय फायदा नहीं होता, लोमड़ी आखरी बार पूरा ज़ोर लगा के छलांग लगाती है, पर फिर भी अंगूर पकड़ मे नहीं आते,
लोमड़ी अंत मे मुह फुलाते हुए बोलती है, के कोय बात नहीं, वैसे भी ये अंगूर खट्टे होंगे, देखने से ही कच्चे लगते है, इतना बोल कर लोमड़ी वह से चल देती है,
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सार- जो चीज़ हाथ मे ना लगे उसकी बुराई कर के थोड़ा सुकून मिल जाता है, ये बहोत सारे जीव का स्वभाव होता है, हाहाहा "पर ये बुरी बात है, "
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लोमड़ी अंत मे मुह फुलाते हुए बोलती है, के कोय बात नहीं, वैसे भी ये अंगूर खट्टे होंगे, देखने से ही कच्चे लगते है, इतना बोल कर लोमड़ी वह से चल देती है,
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सार- जो चीज़ हाथ मे ना लगे उसकी बुराई कर के थोड़ा सुकून मिल जाता है, ये बहोत सारे जीव का स्वभाव होता है, हाहाहा "पर ये बुरी बात है, "
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