Monday, May 8, 2017

Short Biography of Ganga Putra Bhishm - Ganga Putra Bhism par Essay

पितृ भक्ति के प्रतीक भीष्म अत्यंत आदरणीय महापुरुष थे। उनका असली नाम देवव्रत था। अपने जीवन मेन भीषण प्रतिज्ञायेँ करने पर उनका नाम भीष्म पड़ा। भीष्म के पिता का नाम शांतनू था। भीष्म की माता का नाम गंगा था और वह देवलोक की अप्सरा थीं। भीष्म की प्रथम गुरु उनकी माता थीं। भीष्म समस्त दिव्यअस्त्रों के ज्ञाता थे। उन्होने अस्त्र-शस्त्र शिक्षा गुरु परशुराम से हासिल की थी। पिता की खुशी के लिये भीष्मनें राज्य के युवराज पद का त्याग किया था। आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भीषण प्रतिज्ञा की। हस्तिनापुर राज्य को चहु-और से सुरक्षित ना देखने तक जीवित रहने की प्रतिज्ञा की। और हस्तीनपुर राज सिंहासन पर जो भी बैठे गा उसमें अपनें पिता की छवि देख कर उम्र भर उनकी सेवा करने की प्रतिज्ञा ली थी।

भीष्म नें अपनी सभी प्रतिज्ञायेँ पूर्ण की और महाभारत के अंतिम युद्ध में युद्ध करते करते अर्जुन के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए। महाभारत का युद्ध पूर्ण होने तक भीष्म वाणों शैया पर अपनें प्राण रोके जीवित रहे। और पांडवों की जीत के बाद हस्तिनापुर को पूरी तरह सुरक्षित देख कर उन्होने अपने अपनें प्राण त्यागे। भीष्म के पास इच्छा मृत्यु का कवच था, इस लिये उनकी इच्छा वीरुध उनका वध असंभव था। कहा जाता है की भीष्म नें किसी जीव को बार बार सुइया चुभो-चुभो कर मारा था इस लिये उन्हे वाणों की शैया मिली थी। भीष्म पूर्व जन्म में श्रपित वसु थे। महाभारत काल में भीष्म नें कई युद्ध लड़े और जीते। कहा जाता है की भीष्म की इजाज़त के बगैर पवन भी उसके कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकता था।     

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