तेनाली
रामन की बुद्धि चातुर्य की अनगिनत कहानिया प्रसिद्ध हैं। उसी अद्भुत वार्ता कोश में
से यह एक बहेतरीन कहानी हम आप के लिए लाये हैं। आशा है आप वाचक गण इसे पढ़ कर प्रसन्न
होंगे।
राजा
कूष्ण देव राय के विशेष सलहकार तेनाली रामन की विशेष बुद्धि चातुर्य कला के कारण अन्य
मंत्री गण हमेशा उन से जलते रहते थे, और तेनाली रामन
की गलतियाँ ढूंढने का मौका देखते रहते थे।
एक
बार किसी दुश्मन राज्य पर आक्रमण कर के राजा कृष्ण देव रायनें विजय प्राप्त की थी, तब वह काफी खुश थे। और उसी खुशी के मौके पर उन्होने अपने पूरे मंत्री मण्डल
में सोने की मुद्रायेँ बांटी। अपने राजा की
इस दरियादिली से सारे मंत्रीगण अत्यंत प्रसन्न हुए।
लेकिन
राजा कृष्ण देव राय नें अपने मंत्रियों के आगे एक अजीब शर्त रख दी। की उनके द्वारा
भेट की गयी मुद्रायेँ सारे मंत्री उनका चहेरा देख कर ही खर्च करेंगे। ऐसा नहीं करने
वाले मंत्री को दंड दिया जाएगा।
सभी
मंत्रियों नें सोचा की अगले दिन जब राजा कृष्ण देव राय सैर पर निकलेंगे तब उनके मुख
के दर्शन कर के सोने की मुद्रा येँ खर्च करेंगे।
इस
तरह करीब दो हफ्ते बीत गए, पर राजा कृष्ण देव राय किसी मंत्री
को नज़र नहीं आए। शायद वह किसी गुप्त यात्रा पर निकल गये थे, या
फिर वह अपने मंत्री गण की निष्ठा एवं धैर्य की परीक्षा ले रहे थे।
एक
दिन सभी मंत्री गण को राजा कृष्ण देव राय का बुलावा आया। सारे मंत्री सभा गृह में उपस्थित
हुए। उसी सभा में तेनाली रामन भी आये हुए थे।
राजा
कृष्ण देव राय नें पूछा की आप लोगों नें सुवर्ण मुद्राओं का क्या किया?
तब
तेनाली रामन के अलावा सभी मंत्री गण एक सुर में बोल उठे की आप नें दर्शन ही नहीं दिये
तो हम मुद्रायेँ कैसे खर्च करते?
यह
बात सुन कर राजा कृष्ण देव राय हसने लगे।
तभी
चतुर तेनाली रामन बोल उठे की महाराज मैंने तो अपनी सारी मुद्रायेँ बड़े शौख से खर्च
कर डाली। नयी पघड़ी, नया कुर्ता, नए जूते और घर का कुछ ज़रूरी सामान खरीद लिया।
राजा
कृष्ण देव राय तुरंत क्रोधित हो गए। उन्होने कहा की,,, मैंने
बोला था ना की,,, मुझे
देखे बिना कोई मंत्री सुवर्ण मुद्रायेँ खर्च नहीं करेगा…
राजा
कृष्ण देव राय के गुस्सा होने पर दूसरे अन्य मंत्रीगण काफी खुश होने लगे। उन सब को
लगा की की आज्ञा का उलंघन करने पर अभी राजा कृष्ण देव राय तेनाली रामन को कुछ दंड देंगे।
लेकिन
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
तेनाली
रामन नें बड़े चातुर्य से जवाब दिया की,,, मैंने आप की
आज्ञा का उलंघन किया ही नहीं है महाराज। आप के द्वारा भेंट की गयी सुवर्ण मुद्रा पर
आप का मुख चित्र द्रश्यमान था, उसी को देख देख कर मै सारी
मुद्रायेँ खर्च कर रहा था। इस तरह मैंने आप की आज्ञा का पालन भी किया और अपने ज़रूरत
का समान भी खरीद लिया।
एक बार फिर सारे मंत्री गण सिर खुजाते रहे गए और राजा कृष्ण देव राय अपने प्रिय मंत्री तेनाली रामन की चतुराई की प्रशंसा करते हुए मंत्रमुग्ध हो गए।
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