चंदन तस्कर विरप्पन का पात्र किसी प्राचीन कथा के दैत्य सामान था। इस दुष्कर हत्यारे नें कई बे-गुनाह लोगों को मौत के घाट उतारा था। तमिलनाडू के गाढ़ वन्य विस्तारों में विरप्पन की पनाहगाह थी। विरप्पन टोलियों में घूमता था और समय समय पर अपनें ठिकाने बदलता रहता था। Veerappan का जन्म कर्नाटक में हुआ था। 18 जनवरी 1952 के दिन जन्में विरप्पन के गाँव का नाम गोपीनाथम बताया जाता है।
चोरी-डकेती
और लुटपाट विरप्पन के खून में ही शामिल थी। उसके पिता भी इसी काम में लिप्त हुआ करते
थे। हाथी दात और चंदन की तस्करी के काम में विरप्पन धीरे धीरे आगे बढ्ने लगा। और उसके
रास्ते में जो भी आता या उसे रोकने की कोशिस करता, उसे वह बे
रहमी से मार देता था।
खूंखार
डाकू विरप्पन के गैरकानूनी कामों का कच्चा चिट्ठा दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा था। फिरोती
मांगना, स्मगलिंग करना, खून करना यह सब जैसे उस हैवान के लिए
रोज़ मररा के काम बन गए थे। भारतीय सरकार नें विरप्पन के सिर पर पाँच करोड़ का इनाम भी
रखा था।
तमिलनाडू
की टास्क फोर्स नें 18 अक्तूबर 2004 के दीन विरप्पन नाम के खौफ का अंत कर दिया।
विरप्पन को पकड़ने के इस operation का नाम “कोकून” रखा
गया था।
सरकार
की नाक में दम्म कर के रख नें वाले और पूरी जिंदगी बे-गुनाहों का खून बहाने वाले विरप्पन
की मौत पर उसके गाँव में ही नहीं, पूरे भारत देश में जश्न का मौहोल
बन गया था। आखिरकार विरप्पन के हाथों सताये जाने वाले और मारे जानेवाले लोगों को इन्साफ
मिल चुका था।
#बकरी नें जब भगवान से पूछा की,,, तू है के नहीं
खौफनाक
विरप्पन आज इस दुनियाँ से जा चुका है, पर आज भी उसके जीवन
चरित्र पर फिल्में बनाई जाती हैं। विरप्पन के जीवन के बारे में कई किताबें भी पब्लिश
हो चुकी हैं। भगवान का शुक्र है की आज तमिलनाडू के जंगलों में घुमनें वाला मौत का सौदागर
अब कभी किसी मासूम पर कहर ढाने वापिस नहीं आ पाएगा।
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