भगवान
श्री कृष्ण का जन्म दिन ही जन्माष्टमी कहा जाता है। कृष्ण भगवान का जन्म भाद्र
पद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन हुआ था। कृष्ण जन्मोत्सव केवल भारत देश में ही नहीं पर विश्व
के कई और देशों में हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है। अधर्म और अत्याचार पर विजय पा
कर धर्म की स्थापना करने के लिए भगवान श्री कृष्ण नें पृथ्वी पर अवतार लिया था। भगवान
कृष्ण के जन्म दिन पर पूरी मथुरा नगरी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है, और हर ओर खुशियों का माहौल होता है। कृष्ण भगवान का जन्मदिन मनाने के लिए, इस पावन त्यौहार पर दूर दूर से श्रद्धालु गण मथुरा आते हैं।
जन्माष्टमी
पर कृष्ण भगवान की झाँकी सजाई जाती है। इस पवन दिन पर छोटे बड़े सभी उपवास और व्रत रख
कर कृष्ण भगवान के प्रति अपनी भक्ति और अटूट श्रद्धा का इज़हार करते हैं। जन्माष्टमी
के दिन भगवान श्री कृष्ण को विभिन्न तरह के भोग लगाए जाते हैं और लोगों में भोग का
प्रसाद बांटा जाता है।
जन्माष्टमी
के पावन पर्व पर छोटे बड़े गाँव और नगरों में मेले लगते हैं। लोग नए कपड़े, गहेने और नयी चिज़े खरीदते हैं। बड़े और बच्चे इस पावन त्योहार पर मेले में
झूला जुलते हैं तथा घुमनें फिरने का लुथव उठाते हैं। कृष्ण जन्म तिथि को कल्याणकारी
मान कर व्यापारी वर्ग इस मौसम में नया कारोबार भी शुरू करते हैं। मकान, दुकान या अन्य कोई बड़ी वस्तु जन्माष्टमी पर्व पर खरीदना शुभ माना जाता है।
इस
पावन त्यौहार पर खास तौर पर श्री कृष्ण भगवान के मंदिर में भक्तों की बड़ी भीड़ लगती
है। श्रद्धालु गण श्री कृष्ण भगवान को झूला जुला कर और भक्ति गीत गा कर प्रसन्न करते
हैं और खुद के लिए अच्छे भविष्य की कामना करते हुए कान्हा से आशीर्वाद लेते हैं। कृष्ण
जन्म की रात्री को मोहरात्रि भी कहा जाता है। सांसारिक आसक्ति से छुटकारा पाने के लिए
कृष्ण जन्म रात्री पर ध्यान, कृष्ण मंत्र और कृष्ण जप करना
अत्यंत कल्याणकारी बताया गया है।
जन्माष्टमी
पर दूध, दहीं, घी, मक्खन, हल्दी और गुलाब-जल से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया जाता है। केसर और कपूर
भी कृष्ण भगवान को अधिक प्रिय हैं। उनकी पूजा में इंका प्रयोग अवश्य किया जाता है।
कृष्ण जन्म समस्त विश्व में खुशियों के आने का सूचक होता है। प्राचीन काल से इस भव्य
उत्सव को बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। और आने वाले युग युगांतर तक यह परंपरा
कायम रहेगी। - जय श्री कृष्ण।
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